MA Semester-1 Sociology paper-III - Social Stratification and Mobility - Hindi book by - Saral Prshnottar Group - एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता - सरल प्रश्नोत्तर समूह
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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2683
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 समाजशास्त्र तृतीय प्रश्नपत्र - सामाजिक स्तरीकरण एवं गतिशीलता

प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।

उत्तर -

लैंगिक हाशियाकरण के विभिन्न पहलू
(Different Aspects of Marginalization)

लैंगिक श्रम - विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं को निम्न प्रकार से दर्शाया जा सकता है -

(1) पारिवारिक वेतन के स्तर पर हाशियाकरण - "पारिवारिक श्रम अब भी श्रम के वर्तमान यौन-विभाजन की नींव का पत्थर है जिसमें औरतों का मुख्य दायित्व घरेलू कामकाज और पुरुषों का वैतनिक कार्य है।" औद्योगिक क्रान्ति के दौरान कारखानों में काम के लिए स्त्री और बच्चे कम वेतन पर उपलब्ध हुए। परिवार के पुरुष से अलग स्त्री का अपना वेतन और बदले में घर की व्यवस्था में असन्तुलन ने स्त्रियों की बाजार की श्रमशक्ति में भागीदारी को स्वीकार नहीं किया।

एकल वेतन के स्थान पर पारिवारिक वेतन की सिफारिश की गई ताकि पत्नियों को परिवार में रखा जा सके और संसाधनों पर नियन्त्रण के कारण पुरुष श्रेष्ठता की स्थिति में रहे। पूंजीपतियों ने घरेलू मातृत्व की विचारधारा को विस्तार दिया। स्त्री के लिए सबसे संगत गतिविधि परिवार के लिए स्वास्थ्य और आरामदेह वातावरण का निर्माण करना माना गया। व्यक्ति के स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति को अर्थाजन का अधिकार हैं, महिलाओं का अस्वीकार आधी श्रम शक्ति को व्यर्थ करता है। पूँजीवादी व्यवस्था में स्त्री कामगारों का उपयोग सस्ते श्रम की उपलब्धि के रूप में किया गया। स्त्रियों के आरक्षित श्रम का पुरुष श्रम की अनुपलब्धता की स्थिति में प्रयोग अनेकों बार किया गया है। सामान्य स्थिति में आते ही स्त्रियों को हटा दिया जाता है। स्त्री की बेरोजगारी को कभी संकट के रूप में नहीं लिया गया।

लिंग आधारित कार्य के बंटवारे के द्वारा स्त्री के कम वेतन को न्यायोचित ठहराते हुए स्त्रियों की पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता बनाई रखी जाती है व स्त्री-पुरुष के भिन्न-भिन्न कार्य क्षेत्रों की वकालत की जाती है। ये काम कम स्तरीय समझे जाने व कम कमाऊ होने के कारण स्त्री के स्वतन्त्र व्यक्तित्व के विकास में सहायता नहीं कर सके और परिवार का नियन्त्रण बनाए रखने में सहयोगी हुए। उन परिवारों में जहां स्त्रियाँ कमाऊ हैं, पत्नियाँ गृह कार्य से मुक्त नहीं है। "कमाऊ औरतों के लिए दोहरा दिन एक सच्चाई है।” स्त्रियों के श्रम शक्ति में भागीदारी के अनुपात में उनकी मुक्ति का दायरा नहीं बढ़ा।

(2) घरेलू श्रम के स्तर पर हाशियाकरण - घरेलू श्रम के प्रति दोयम दर्जे की भावना घरेलू श्रम का अवमूल्यन करती है। पूंजीवादी व्यवस्था में प्रत्यक्ष उपभोग के लिए निर्मित सामग्री के विपरीत ऐसे 'माल' के उत्पादन पर जोर दिया जाता है जिसके उपयोग में मूल्य और विनिमय मूल्य दोनों आवश्यक हैं। मानव सभ्यता के इतिहास में यह पहला समाज है जहाँ उत्पादन का बड़ा हिस्सा माल उत्पादन का होता है। केवल उपयोग मूल्य वाली सामग्री जिनका विनिमय मूल्य नहीं होता, का उत्पादन करने वाले, श्रम को मुद्रा से सीधे सम्बन्ध के अभाव में दोयम दर्जे का स्थान मिलता है। घरेलू श्रम ऐसा ही श्रम है। प्रजनन, बच्चों के पालन-पोषण और घर-गृहस्थी में लगने वाला श्रम सामाजिक रूप से आवश्यक उत्पादन का बड़ा हिस्सा होते हुए भी वास्तविक कार्य इसलिए नहीं माना जाता क्योकि यह बाजार व व्यवसाय से दूर होता है।

इसके विपरीत पुरुषों का माल उत्पादन से सीधा सम्बन्ध होता है। घरेलू श्रम में उनकी भागीदारी नगण्य होती है। "घरेलू श्रम में पुरुष की कोई भागीदारी नहीं होती। यदि वे काम करते हैं तो उसे महज आपत्तिजनक ही नहीं, मनोबल तोड़ने वाला पुरुषत्व विहीन, स्वास्थ्य के लिए अहितकर माना जाता है।" यदि वे घरेलू और स्त्रियोचित समझे जाने वाले कार्य करते भी हैं तो तभी जब उससे पैसा कमाने के अवसर हो। "ऐसे समाज में जहाँ मुद्रा मूल्य का निर्धारण करती है, स्त्री एक ऐसी कोटि हैं जो मुद्रा अर्थशास्त्र की परिधि से बाहर काम करती है। उसके कामों को मुद्रा में नहीं आंका जाता, अतः वह मूल्यहीन होता है।" भौतिक आधार पर स्त्री की निम्न स्थिति का यह बहुत महत्त्वपूर्ण कारक है। घरेलू श्रम की विपुल राशि के बावजूद उत्पादक श्रम में शामिल न होने के कारण इसकी गणना नहीं की जाती।

(3) घर-बाहर के बीच तनी रस्सी पर चलने का रोमांच - घर - बाहर के प्रश्नों में विवाह या कैरियर का चुनाव स्त्री के लिए शाश्वत प्रश्न रहा है। सामाजिक एवं पारिवारिक स्थितियों के परिणामस्वरूप विवाह करने और सन्तानोत्पत्ति के बाद घर-परिवार के लिए खुद कैरियर छोड़कर जाती स्त्रियों की संख्या कम नहीं है। बड़े पैमाने पर कामकाजी स्त्रियों में यह प्रवृति देखी जा रही है। स्त्री शिक्षा और प्रशिक्षण पर खर्च किया गया श्रम एवं धन तथा स्त्री की प्रतिभा का व्यर्थ जाना महत्त्वपूर्ण प्रश्नों को जन्म देता है, साथ ही महत्त्वपूर्ण नौकरियों में महिला प्रत्याशियों के प्रति अरुचि भी उत्पन्न करता है।

ऐसे समय में जब आज भी समाज की मानसिकता स्त्री के लिए घर और बाहर में से एक चुनने की है - स्त्री को घर और नौकरी में से एक चुनना चाहिए एवं कैरियरिस्ट होना स्त्री के लिए गाली की तरह इस्तेमाल होता है। कैरियरिस्ट यानी एक छोटे लाभ के लिए सब कुछ दांव पर लगाने वाली। 'परछाई अन्नपूर्णा' की विभा घर से बाहर अपने लिए जगह तलाशना चाहती है, वह जानते हुए भी कि घर से सड़क पर आई स्त्री चरित्रहीन घोषित कर दी जाती है।

(4) कामकाजी स्त्री का अविर्भाव - स्वतन्त्रता प्राप्ति के आस-पास स्त्री को नौकरी और विवाह में से एक चुनना था, विवाह प्राय: निर्विकल्प स्थिति थी। यदि पढ़-लिखकर स्त्री नौकरी करना चाहती थी, तो विवाह और परिवार के दायित्वों की उसकी क्षमता पर शक किया जाता था। उस समय वह सामान्य मान्यता थी किं व्यावहारिक दृष्टि से नौकरी और परिवार के दायित्व एक साथ नहीं सम्भाले जा सकते। अतः स्त्रियों ने ज्यादातर विवाह के विकल्प स्वीकार किए हैं और जिन्होंने नौकरी के विकल्प स्वीकार किए हैं उनमें से अधिकांशतः विवाह और पारिवारिक जीवन से वंचित रही हैं। नौकरियों में महत्त्वपूर्ण पदों पर अविवाहित एवं बिना बच्चों वाली स्त्रियों की शर्त ने (आई०एफ०एस०, एयर होस्टेस आदि) भी कोई एक विकल्प चुनने की बाध्यता रखी। विशिष्ट नौकरियों में अविवाहित अथवा बच्चे न होने की अनिवार्यता व्यावहारिक कठिनाईयों को देखते हुए समाप्त की गई।

माता-पिता ने भी आर्थिक सहयोग हेतु अपनी बेटियों के कामकाजी होने को प्रोत्साहित किया। कई बार यह भी पाया गया कि अविवाहिता बेटियां अपने पिता के परिवार का पोषण कर रही हैं और चाह कर भी विवाह संस्था में नहीं जा पा रही हैं। परिवार ने जहां आर्थिक कारणों से स्त्री को कामकाजी होने के अवसर दिए, स्त्रियों की काम के प्रति मनोवृत्ति में भी फर्क आया है। यह दृष्टि भी विकसित हुई है कि पति या माता-पिता के भरण-पोषण में सक्षम होने पर भी शिक्षित स्त्रियों को आत्मनिर्भर होना चाहिए।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण क्या है? सामाजिक स्तरीकरण की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की क्या आवश्यकता है? सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों को स्पष्ट कीजिये।
  3. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण को निर्धारित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  4. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण किसे कहते हैं? सामाजिक स्तरीकरण और सामाजिक विभेदीकरण में अन्तर बताइये।
  5. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण से सम्बन्धित आधारभूत अवधारणाओं का विवेचन कीजिए।
  6. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के सम्बन्ध में पदानुक्रम / सोपान की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  7. प्रश्न- असमानता से क्या आशय है? मनुष्यों में असमानता क्यों पाई जाती है? इसके क्या कारण हैं?
  8. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के स्वरूप का संक्षिप्त विवेचन कीजिये।
  9. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के अकार्य/दोषों का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  10. प्रश्न- वैश्विक स्तरीकरण से क्या आशय है?
  11. प्रश्न- सामाजिक विभेदीकरण की विशेषताओं को लिखिये।
  12. प्रश्न- जाति सोपान से क्या आशय है?
  13. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता क्या है? उपयुक्त उदाहरण देते हुए सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  14. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के प्रमुख घटकों का वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- सामाजिक वातावरण में परिवर्तन किन कारणों से आता है?
  16. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की खुली एवं बन्द व्यवस्था में गतिशीलता का वर्णन कीजिए तथा दोनों में अन्तर भी स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता का विवेचन कीजिए तथा भारतीय समाज में गतिशीलता के निर्धारक भी बताइए।
  18. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता का अर्थ लिखिये।
  19. प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के पक्षों का संक्षिप्त विवेचन कीजिए।
  20. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  21. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के मार्क्सवादी दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  22. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण पर मेक्स वेबर के दृष्टिकोण का विवेचन कीजिये।
  23. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की विभिन्न अवधारणाओं का आलोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये।
  24. प्रश्न- डेविस व मूर के सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्त का वर्णन कीजिये।
  25. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्य पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  26. प्रश्न- डेविस-मूर के संरचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त का संक्षिप्त परिचय दीजिये।
  27. प्रश्न- स्तरीकरण की प्राकार्यात्मक आवश्यकता का विवेचन कीजिये।
  28. प्रश्न- डेविस-मूर के रचनात्मक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त पर एक आलोचनात्मक टिप्पणी लिखिये।
  29. प्रश्न- जाति की परिभाषा दीजिये तथा उसकी प्रमुख विशेषतायें बताइये।
  30. प्रश्न- भारत में जाति-व्यवस्था की उत्पत्ति के विभिन्न सिद्धान्तों का वर्णन कीजिये।
  31. प्रश्न- जाति प्रथा के गुणों व दोषों का विवेचन कीजिये।
  32. प्रश्न- जाति-व्यवस्था के स्थायित्व के लिये उत्तरदायी कारकों का विवेचन कीजिये।
  33. प्रश्न- जाति व्यवस्था को दुर्बल करने वाली परिस्थितियाँ कौन-सी हैं?
  34. प्रश्न- भारतवर्ष में जाति प्रथा में वर्तमान परिवर्तनों का विवेचन कीजिये।
  35. प्रश्न- जाति व्यवस्था में गतिशीलता सम्बन्धी विचारों का विवेचन कीजिये।
  36. प्रश्न- वर्ग किसे कहते हैं? वर्ग की मुख्य विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण व्यवस्था के रूप में वर्ग की आवधारणा का वर्णन कीजिये।
  38. प्रश्न- अंग्रेजी उपनिवेशवाद और स्थानीय निवेश के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में उत्पन्न होने वाले वर्गों का परिचय दीजिये।
  39. प्रश्न- जाति, वर्ग स्तरीकरण की व्याख्या कीजिये।
  40. प्रश्न- 'शहरीं वर्ग और सामाजिक गतिशीलता पर टिप्पणी लिखिये।
  41. प्रश्न- खेतिहर वर्ग की सामाजिक गतिशीलता पर प्रकाश डालिये।
  42. प्रश्न- धर्म क्या है? धर्म की विशेषतायें बताइये।
  43. प्रश्न- धर्म (धार्मिक संस्थाओं) के कार्यों एवं महत्व की विवेचना कीजिये।
  44. प्रश्न- धर्म की आधुनिक प्रवृत्तियों की विवेचना कीजिये।
  45. प्रश्न- समाज एवं धर्म में होने वाले परिवर्तनों का उल्लेख कीजिये।
  46. प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में धर्म की भूमिका को स्पष्ट कीजिये।
  47. प्रश्न- जाति और जनजाति में अन्तर स्पष्ट कीजिये।
  48. प्रश्न- जाति और वर्ग में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- स्तरीकरण की व्यवस्था के रूप में जाति व्यवस्था को रेखांकित कीजिये।
  50. प्रश्न- आंद्रे बेत्तेई ने भारतीय समाज के जाति मॉडल की किन विशेषताओं का वर्णन किया है?
  51. प्रश्न- बंद संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  52. प्रश्न- खुली संस्तरण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं?
  53. प्रश्न- धर्म की आधुनिक किन्हीं तीन प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये।
  54. प्रश्न- "धर्म सामाजिक संगठन का आधार है।" इस कथन का संक्षेप में उत्तर दीजिये।
  55. प्रश्न- क्या धर्म सामाजिक एकता में सहायक है? अपना तर्क दीजिये।
  56. प्रश्न- 'धर्म सामाजिक नियन्त्रण का प्रभावशाली साधन है। इस सन्दर्भ में अपना उत्तर दीजिये।
  57. प्रश्न- वर्तमान में धार्मिक जीवन (धर्म) में होने वाले परिवर्तन लिखिये।
  58. प्रश्न- जेण्डर शब्द की अवधारणा को स्पष्ट कीजिये।
  59. प्रश्न- जेण्डर संवेदनशीलता से क्या आशय हैं?
  60. प्रश्न- जेण्डर संवेदशीलता का समाज में क्या भूमिका है?
  61. प्रश्न- जेण्डर समाजीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  62. प्रश्न- समाजीकरण और जेण्डर स्तरीकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  63. प्रश्न- समाज में लैंगिक भेदभाव के कारण बताइये।
  64. प्रश्न- लैंगिक असमता का अर्थ एवं प्रकारों का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  65. प्रश्न- परिवार में लैंगिक भेदभाव पर प्रकाश डालिए।
  66. प्रश्न- परिवार में जेण्डर के समाजीकरण का विस्तृत वर्णन कीजिये।
  67. प्रश्न- लैंगिक समानता के विकास में परिवार की भूमिका का वर्णन कीजिये।
  68. प्रश्न- पितृसत्ता और महिलाओं के दमन की स्थिति का विवेचन कीजिये।
  69. प्रश्न- लैंगिक श्रम विभाजन के हाशियाकरण के विभिन्न पहलुओं की चर्चा कीजिए।
  70. प्रश्न- महिला सशक्तीकरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
  71. प्रश्न- पितृसत्तात्मक के आनुभविकता और व्यावहारिक पक्ष का संक्षिप्त वर्णन कीजिये।
  72. प्रश्न- जाति व्यवस्था और ब्राह्मणवादी पितृसत्ता से क्या आशय है?
  73. प्रश्न- पुरुष प्रधानता की हानिकारकं स्थिति का वर्णन कीजिये।
  74. प्रश्न- आधुनिक भारतीय समाज में स्त्रियों की स्थिति में क्या परिवर्तन आया है?
  75. प्रश्न- महिलाओं की कार्यात्मक महत्ता का वर्णन कीजिए।
  76. प्रश्न- सामाजिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता का वर्णन कीजिये।
  77. प्रश्न- आर्थिक क्षेत्र में लैंगिक विषमता की स्थिति स्पष्ट कीजिये।
  78. प्रश्न- अनुसूचित जाति से क्या आशय है? उनमें सामाजिक गतिशीलता तथा सामाजिक न्याय का वर्णन कीजिये।
  79. प्रश्न- जनजाति का अर्थ एवं परिभाषाएँ लिखिए तथा जनजाति की विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  80. प्रश्न- भारतीय जनजातियों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  81. प्रश्न- अनुसूचित जातियों एवं पिछड़े वर्गों की समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- जनजातियों में महिलाओं की प्रस्थिति में परिवर्तन के लिये उत्तरदायी कारणों का वर्णन कीजिये।
  83. प्रश्न- सीमान्तकारी महिलाओं के सशक्तीकरण हेतु किये जाने वाले प्रयासो का वर्णन कीजिये।
  84. प्रश्न- अल्पसंख्यक कौन हैं? अल्पसंख्यकों की समस्याओं का वर्णन कीजिए एवं उनका समाधान बताइये।
  85. प्रश्न- भारत में मुस्लिम अल्पसंख्यकों की स्थिति एवं समस्याओं का वर्णन कीजिए।
  86. प्रश्न- धार्मिक अल्पसंख्यक समूहों से क्या आशय है?
  87. प्रश्न- सीमान्तिकरण अथवा हाशियाकरण से क्या आशय है?
  88. प्रश्न- सीमान्तकारी समूह की विशेषताएँ लिखिये।
  89. प्रश्न- आदिवासियों के हाशियाकरण पर टिप्पणी लिखिए।
  90. प्रश्न- जनजाति से क्या तात्पर्य है?
  91. प्रश्न- भारत के सन्दर्भ में अल्पसंख्यक शब्द की व्याख्या कीजिये।
  92. प्रश्न- अस्पृश्य जातियों की प्रमुख निर्योग्यताएँ बताइये।
  93. प्रश्न- अस्पृश्यता निवारण व अनुसूचित जातियों के भेद को मिटाने के लिये क्या प्रयास किये गये हैं?
  94. प्रश्न- मुस्लिम अल्पसंख्यक की समस्यायें लिखिये।

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